गीता प्रेस, गोरखपुर >> गृहस्थ में कैसे रहें गृहस्थ में कैसे रहेंस्वामी रामसुखदास
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गृहस्थ-संबंधी समस्याओं का समुचित समाधान...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वर्तमान समय में हिन्दू-संस्कृति की आश्रम-व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो रही है
चारों आश्रमों का मूल जो गृहस्थाश्रम है, उसकी स्थिति बड़ी शोचनीय हो चुकी
है। गृहस्थ को विभिन्न समस्याओं ने जकड़ रखा है और वह निराशा, अशान्ति एवं
तनावयुक्त जीवन जी रहा है। परमश्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराज के पास भी ऐसे
अनेक गृहस्थ स्त्री-पुरुष आते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन की समस्याएँ
उनके सामने रखकर उनका समुचित समाधान पाते हैं। अतः एक ऐसी पुस्तक की
आवश्यकता समझी गयी, जिसमें गृहस्थ–सम्बन्धी आवश्यक बातों की जानकारी
के साथ-साथ गृहस्थों को अपनी विभिन्न समस्याओं का समुचित समाधान भी मिल
सके। प्रस्तुत पुस्तक उसी आवश्यकता की पूर्ति करती है। पाठकों से निवेदन
है कि वे इस पुस्तक को स्वयं मननपूर्वक पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने की
प्रेरणा करें। यह पुस्तक प्रत्येक घर में रहनी चाहिये। विवाह आदि के अवसर
पर इस पुस्तक का वितरण करना चाहिए।
-प्रकाशक
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